मुजफ्फरपुर
कोरोना की लहर में जब सबकुछ बंद था और लोग घरों में कैद थे, उसमें भी मुजफ्फरपुर के निजी अस्पतालों ने नसबंदी करने का बिल स्वास्थ्य विभाग को थमा दिया है। निजी अस्पतालों का दावा है कि कोरोना काल के दौरान इमरजेंसी में महिला व पुरुष नसबंदी की गई थी। इसके लिए पिछले डेढ़ वर्ष में निजी अस्पतालों ने करीब 400 ऑपरेशन के लिए 25 लाख रुपये का बिल विभाग को थमाया है। अब स्वास्थ्य विभाग इसकी जांच करने की तैयारी में जुट गया है।
वैसे निजी अस्पतालों के बिल पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। स्वास्थ्य विभाग की मानें तो कोरोना के कहर के दौरान सबकुछ बंद था। लॉकडाउन के चलते लोग घर से बाहर नहीं निकल रहे थे, तब ऑपरेशन कैसे हो गया। सरकारी अस्पतालों में भी इस दौरान ऑपरेशन बंद थे। सिर्फ इमरजेंसी ऑपरेशन किए जा रहे थे। सरकारी अस्पतालों में प्रसव की संख्या में गिरावट आयी थी। इसलिए स्वास्थ्य विभाग बिल की जांच के साथ जिन मरीजों की नसबंदी की गई थी, उनका भी सत्यापन कराएगा। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि यदि मरीज के डाटा में गड़बड़ी मिलती है तो संबंधित अस्पतालों पर कार्रवाई की जाएगी। प्रखंड स्तर पर स्वास्थ्य विभाग की टीम नसबंदी कराने वालों का सत्यापन करेगी।
एक मरीज के लिए मिलते हैं 3500 रुपये
निजी अस्पतालों को एक मरीज की नसबंदी पर 3500 रुपये दिये जाते हैं। यह राशि सरकार की तरफ से मिलती है। इसके अलावा मरीजों को भी तीन हजार की राशि दी जाती है। मरीज को नसबंदी कराने के लिए अस्पताल तक लाने वाले परामर्शदाता या आशा को 600 रुपये दिये जाते हैं। एक अधिकारी ने बताया कि नियम यह भी है कि अस्पतालों को 70 प्रतिशत तक भुगतान बिना जांच के भी किया जा सकता है। 30 प्रतिशत भुगतान जांच के बाद किया जाएगा।
पखवाड़े का बिल भुगतान भी रुका
निजी अस्पतालों में जुलाई 2020 से लेकर अगस्त 2021 तक आठ परिवार नियोजन पखवाड़ा दिखाया गया है। स्वास्थ्य विभाग ने इस पखवाड़े का भी बिल भुगतान रोक दिया है। एसीएमओ का कहना है कि पखवाड़े में कितने लोगों की नसबंदी हुई, इसकी जांच होगी। इसके बाद बिल आगे बढ़ेगा। इस जांच के लिए भी डॉक्टरों की टीम बनाई जाएगी।
आंख का ऑपरेशन करने वाले अस्पताल भी घेरे में
परिवार नियोजन के साथ आंख का ऑपरेशन करने वाले अस्पताल भी जांच के घेरे में हैं। अंधापन निवारण योजना के तहत इन अस्पतालों में प्रत्येक मरीज के इलाज और ऑपरेशन पर दो हजार की राशि दी जाती है। एसीएमओ ने बताया कि कई अस्पतालों के बिल में गड़बड़ी की शिकायत मिली है। जबतक जांच नहीं होगी, भुगतान रोककर रखा जाएगा। उल्लेखनीय है कि जिले में अंधापन निवारण योजना पिछले दो वर्षों से ठप है। इस योजना के तहत मुफ्त में बच्चों और बुजुर्गों की आंखों की जांच की जाती है और चश्मा दिया जाता है, लेकिन 2019 से ही यह योजना जिले में नहीं चल रही है। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि कोरेाना के समय स्कूल बंद थे, इसलिए स्कूलों में बच्चों की जांच नहीं की गई।
जांच के लिए डॉक्टरों की कमेटी बनाई जाएगी। जबतक बिल की जांच रिपोर्ट नहीं आती, भुगतान नहीं किया जाएगा। डॉक्टरों की कमेटी इस रिपोर्ट का भौतिक सत्यापन कर रिपोर्ट देगी। इसके बाद बिल सही पाए जाने पर भुगतान किया जाएगा। – डॉ. सुभाष प्रसाद सिंह, एसीएमओ