ग्लास्गो।
जलवायु वार्ता में उत्सर्जन में कमी लाने के लिए नई तकनीकियों को अपनाने पर भी जोर दिया जा रहा है। इसी सिलसिले में ब्रिटेन के नेतृत्वव में 30 देशों ने 2030 तक शून्य उत्सर्जन वाहनों को अपनाने पर सहमति प्रकट की है। भारत इन 30 देशों में शामिल तो नहीं है लेकिन उसने इस अभियान को बिना किसी प्रतिबद्धता के समर्थन का ऐलान किया है। भारत में भी शून्य उत्सर्जन वाहनों की संख्या तेजी से बढ़ रही है।
जीरो एमिसन व्हीकल ट्रांजिसन काउसिल (जेडईवीटीसी) की बैठक में शून्य उत्सर्जन वाहनों के विस्तार पर 30 देश एकमत हुए हैं जिसका मकसद 2030 या उससे पहले शून्य उत्सर्जन वाहनों का इस्तेमाल सुनिश्चित करना है। भारत, रवांडा, केन्या समेत कई देशों ने अपने बाजार में शून्य उत्सर्जन वाहनों को बढ़ावा देने का ऐलान किया है। जबकि 19 देशों ने शिपिंग कारिडोर को ग्रीन कारीडोर में बदलने की भी इच्छा प्रदर्शित की है। हालांकि काउंसिल की तरफ से सभी देशों से कहा गया है कि वह शून्य उत्सर्जन वाहनों पर तेजी से काम करें। बता दें कि ऊर्जा क्षेत्र के बाद परिवहन क्षेत्र ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का सबसे बड़ा क्षेत्र है।
एक कोष भी बनेगा
विश्व बैंक के 20 करोड़ डॉलर के एक कोष की स्थापना का ऐलान किया गया जिसे अगले दस सालों में सड़क यातायात से होने वाले उत्सर्जन को कम करने पर खर्च किया जाएगा। मूलत: इसे शून्य उत्सर्जन वाहनों के लिए सड़कों पर बुनियादी ढाचे जैसे इलेक्ट्रिक चार्जर आदि लगाने पर खर्च किया जाएगा।
ब्रिटेन डीजल ट्रक हटाएगा
शून्य उत्सर्जन वाहनों में मूलत कारों एवं वैन पर फोकस किया गया है। लेकिन ब्रिटेन ने कहा है कि वह 2035-40 के बीच सभी डीजल ट्रकों को भी हटा देगा। उसके स्थान पर हरित ऊर्जा से चलने वाले ट्रकों का इस्तेमाल सुनिश्चित करेगा।
भारत का पक्ष
भारत की तरफ से काउंसिल की बैठक में नीति आयोग के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। आयोग की तरफ से कहा गया है कि उसने शून्य उत्सर्जन वाहनों को बढ़ावा देने के लिए अपना गैर बाध्यकारी समर्थन प्रदान किया है। दरअसल, भारत तेजी से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर बढ़ रहा है। खासकर दोपहिये और तिपहिये इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढ़ रही है जो देश के कुल वाहनों का 80 फीसदी हिस्सा हैं।