भोपाल
खंडवा लोकसभा उपचुनाव में चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर उस उपचुनाव में अपनी दावेदारी को वापस लेने वाले प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव अब कांग्रेस के झंडे और बैनर के बिना अपनी ताकत का अहसास करवाने पार्टी के नेताओं को करवाने की तैयारी में हैं। इसमें उनके भाई एवं पूर्व मंत्री सचिन यादव भी साथ दे रहे हैं। दोनों भाईयों के समर्थकों ने इस आयोजन के लिए खलघाट को ही चुना है और अपनी तैयारी शुरू कर दी है। सचिन यादव ने भी ट्वीट कर आयोजन में लोगों को आने के लिए लिखा है। इस आयोजन को कांग्रेस के भीतर खंडवा उपचुनाव के दौरान उठी गुटबाजी से जोड़ कर देखा जा रहा है। इस आयोजन में ओबीसी खासकर यादव समाज के लोगों को ज्यादा से ज्यादा यहां पर एकत्रित करने की कवायद हो रही है।
सूत्रों की खंडवा उपचुनाव में अरुण यादव को चुनाव नहीं लड़ाने का मन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बना चुके थे। इसके चलते ही अरुण यादव ने उपचुनाव नहीं लड़ने का ऐलान किया था। अब अरुण यादव अपने भाई सचिन यादव के साथ मिलकर पार्टी के नेताओं को यह दिखाना चाहते हैं निमाड़ में उनसे बड़ा कोई नेता नहीं हैं। साथ ही कांग्रेस में यादवों को एकत्रित करने का माद्दा अरुण और सचिन यादव में ही है। इसलिए इस आयोजन को लेकर अरुण यादव के समर्थक इन दिनों पूरे प्रदेश में घूम रहे हैं। अरुण यादव के समर्थकों का जोर आयोजन में यादवों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में लाने पर है।
अब अरुण यादव और सचिन यादव भी अपने पिता की तर्ज पर पार्टी के आला नेताओं को वही ताकत दिखाना चाहते हैं। इसके लिए यादव बंधुओं के समर्थकों ने सोशल मीडिया पर ‘चलो खलघाट’ अभियान चलाया है। सचिन यादव ने ट्वीट पर एक पोस्टर अपलोड किया है। जिसमें दोनों भाईयों के साथ उनके पिता की फोटो हैं, इस पर लिखा है चलो खलघाट। इस आयोजन के जरिए वे न सिर्फ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी मुकुल वासनिक को अपनी ताकत का अहसास करवाएंगे।
खंडवा लोकसभा का उपचुनाव लड़ने से इंकार करने वाले अरुण यादव अपने पिता पूर्व उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव की तर्ज पर अपनी ही पार्टी के आला नेताओं को अपनी ताकत का आभास कराने वाले हैं। सुभाष यादव ने भी करीब 23 साल पहले नर्मदा नदी के किनारे खलघाट पर लाखों किसानों को एकत्रित कर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को अपनी ताकत का अहसास कराया था। उस वक्त सुभाष यादव किसानों की मांगों को लेकर यहां पर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे।