नई दिल्ली
राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव भले ही दो साल दूर हों, लेकिन भाजपा ने उनको कांग्रेस से छीनने की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। 2018 के विधानसभा चुनाव में यह राज्य भाजपा के हाथ से निकल गए थे। अब पार्टी यहां जमीनी स्तर पर काम कर रही है। खास बात यह है कि पार्टी नेतृत्व बदलावों में उलझने के बजाय के बजाय सामाजिक समीकरणों को अपने पक्ष में लाने को प्राथमिकता दे रही है।
छत्तीसगढ़ व राजस्थान भाजपा के मजबूत गढ़ माने जाते हैं।यह दोनों राज्य ऐसे हैं जहां भाजपा कांग्रेस में सीधा मुकाबला होता है। अन्य दल बेहद सीमित है। ऐसे में सत्ता भाजपा और कांग्रेस के बीच बंटती रहती है। छत्तीसगढ़ में भाजपा बीते चुनाव में 15 साल बाद हारी थी। हालांकि राजस्थान में आमतौर पर पांच साल में सरकारें बदल जाती हैं। भाजपा की रणनीति कांग्रेस से इन दोनों राज्यों को फिर से अपने पास लाने की है। इसके लिए वह दोनों के सामाजिक समीकरणों पर खास ध्यान दे रही है।
राजस्थान में पार्टी राजपूत समुदाय के साथ गुर्जर, जाट और मीणा समीकरणों को साध रही है। राजस्थान में भाजपा की सबसे बड़ी नेता वसुंधरा राजे हैं। बीते सालों में पार्टी ने वसुंधरा राजे के साथ नए नेतृत्व को उभारने की कोशिश भी की थी, लेकिन उसकी एक कवायद परवान नहीं चढ़ सकी।पार्टीअब वहां पर नेतृत्व में बदलाव की जगह सामाजिक समीकरणों को साध रही है। पार्टी के गुर्जर, जाट, मीणा और राजपूत समुदाय से जुड़े दूसरे राज्यों के प्रमुख नेता राजस्थान जाते रहते हैं और वहां का फीडबैक लेकर नेतृत्व को दे रहे हैं। दूसरे राज्यों के नेताओं के जाने से पार्टी को सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि वह जमीनी हकीकत को बारीकी से देखते हैं और किसी तरह के पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं होते हैं।
छत्तीसगढ़ में सामाजिक समीकरण कुछ अलग है। वहां पर भाजपा पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), दलित और आदिवासी समुदायों पर ज्यादा ध्यान दे रही है। राज्य की लगभग आधी आबादी ओबीसी है। ऐसे में उसका फोकस इस बात पर ज्यादा है। बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां पर करारी हार मिली थी। भाजपा की कोशिश है कि वहां पर अपनी खोई साख और सरकार दोनों वापस ला सके। चूंकि अभी दो साल का समय है, इसलिए पार्टी के पास जमीनी काम करने का काफी समय भी है। दलित और आदिवासी समुदाय से आने वाले स्थानीय नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा है। हालांकि काम इस तरीके से किया जा रहा है ताकि राज्य में किसी तरह की कोई गुटबाजी न पनपे और पार्टी का काम और पार्टी की जड़ें मजबूत हो सके।
वैसे भी भाजपा देश भर में शहरों के बड़े नाम वाले नेताओं से बाहर निकलकर दूरदराज के क्षेत्रों कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले विभिन्न सामाजिक समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को आगे बढ़ा रही है। ऐसे में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी इस दिशा में काम कर रही है।