भिलाई
छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर पर दुर्ग जिले छत्तीसगढ़ी सेवी दो विभूतियों को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सम्मानित किया। दो अलग-अलग सत्रों में हुए आयोजन में सुबह के सत्र में छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर तथा संस्कृति एवं पुरातत्व, छत्तीसगढ़ शासन के सौजन्य से संस्कृति विभाग सभागार महंत घासीदास संग्रहालय परिसर रायपुर में छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस का आयोजन अमरजीत भगत संस्कृति मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन के मुख्य आतिथ्य में किया गया। वहीं शाम को मुख्यमंत्री आवास में विशेष कार्यक्रम रखा गया। जिसमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हाथों भी 19 विभूतियों को सम्मानित किया गया। इनमें दुर्ग जिले से चंदैनी गोंदा के प्रथम उद्घोषक व चंदैनी गोंदा – छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा ग्रंथ के लेखक व संपादक डॉ. सुरेश देशमुख, वरिष्ठ साहित्यकार तथा छन्द के छ के संस्थापक अरुण निगम भी शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि डॉ. सुरेश देशमुख ने दाऊ रामचंद्र देशमुख के कालजयी लोकमंच चंदैनी गोंदा के अनेक कार्यक्रमों में उद्घोषक एवं सूत्रधार की भूमिका निभाते हुए छत्तीसगढ़ी भाषा को राष्ट्रीय स्तर तक लोकप्रिय बनाया। उन्होंने चंदैनी गोंदा – छत्तीसगढ़ की एक सांस्कृतिक यात्रा नामक ग्रंथ की रचना कर चंदैनी गोंदा के कलाकारों तथा आयोजनों के बारे में सचित्र जानकारियाँ देकर एक सांस्कृतिक युग की स्वर्णिम स्मृतियों का दस्तावेजीकरण किया है।
जनकवि कोदूराम दलित के सुपुत्र अरुण निगम ने छन्द के छ नाम के आॅनलाइन गुरुकुल की स्थापना कर विलुप्त होते अनेक भारतीय छन्दों को छत्तीसगढ़ी भाषा के माध्यम से पुनर्जीवित किया है। छन्द के छ का उद्देश्य छत्तीसगढ़ी भाषा को समृद्ध करना है। जिसने एक साहित्यिक आंदोलन का रूप ले लिया है जिसमें छत्तीसगढ़ के लगभग बीस जिलों के दो सौ से अधिक नवोदित रचनाकार छत्तीसगढ़ी माध्यम में छन्द सीखकर उत्कृष्ट साहित्य का सृजन कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के आयोजन में डॉ. सुरेश देशमुख व अरुण निगम सहित कुल उन्नीस साहित्यकारों व पत्रकारों को जहाँ अमरजीत भगत संस्कृति मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन ने स्मृति-चिन्ह भेंट कर सम्मानीय किया वहीं शाम को भूपेश बघेल, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन ने सभी उन्नीस विभूतियों को मुख्यमंत्री आवास में छत्तीसगढ़ की पारंपरिक पहचान के रूप में गमछा और प्रमाणपत्र प्रदान करते हुए सम्मानित किया। छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस में अनेक विद्वान वक्ताओं ने चर्चा गोष्ठी में अपने विचार व्यक्त किये और अनेक जिले से आये कवियों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में कविताएँ पढ़ीं।