भोपाल
हमीदिया अस्पताल में सोमवार को बड़ी घटना हुई, जिसमें रात में ही चार बच्चों की मौत हो गई और मौत का आंकड़ा बढ़ने की आशंका है। घटना चूंकि शॉर्ट सर्किट से होना बताई जा रही है, क्योंकि बिजली वायरिंग ठीक नहीं थी। दूसरी खामी फायर सिस्टम को लेकर थी, जिसे 15 साल से दुरुस्त नहीं किया गया।
प्रदेश राजधानी के 50 फीसदी अस्पतालों में आग बुझाने के अब तक कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है। इस श्रेणी में सरकारी और प्राइवेट अस्पताल दोनों शामिल हैं। सरकारी अस्पतालों में लाखों रुपए बजट कम पड़ रहा है और प्राइवेट अस्पताल में हर एक मरीज से लाखों रुपए बिल वसूलने के बाद भी अस्पताल संचालक 1.5 से 2 लाख खर्च करके फायर उपकरण नहीं लगवा पा रहे हैं। इस लापरवाही के कारण अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है। इसके बाद भी नगर निगम भोपाल फायर एनओसी को लेकर सख्ती नहीं बरत रहा है।
निगम के फायर शाखा ने पिछले साल शहर के 600 अस्पतालों का आॅडिट किया था। मौके पर तुरंत नोटिस दिए गए, लेकिन अब तक 300 से अधिक अस्पतालों में फायर सेफ्टी सिस्टम नहीं लगा। यह वह आंकड़ा है, जिनको निगम ने नोटिस दिए हैं। जबकि शहर में छोटे -बड़े मिलकर लगभग 3 हजार से अधिक अस्पताल हैं। वहीं, दूसरी तरफ 100 से अधिक एनओसी के आवेदन फायर शाखा में कुछ कागजी कमी और कमीशनखोरी के कारण सालभर से पेंडिंग है।
नगर निगम फायर शाखा की कार्रवाई सिर्फ रिमाइंडर नोटिस तक समिति है। शाखा प्रभारी रामेश्वर नील ने बताया कि 300 से अधिक अस्पताल संचालकों को 3 बार रिमाइंडर नोटिस भेज चुके हैं। हर दो-तीन महीने में एक रिमाइंडर नोटिस दिया जाता है। इनके खिलाफ एक्शन राजनीति हस्तक्षेप के कारण नहीं ले पा रहे हैं।
शहर के कई अस्पताल संचालकों के फायर सिस्टम लगवाने में पसीने छूट रहे हैं। इनमें अधिकतर वह अस्पताल संचालक हैं, जो कि किराए की बिल्डिंग में अस्पताल का संचालन करते हैं। जबकि फायर सिस्टम लगवाने में महज 1.5 से 2 लाख तक खर्च आता है और यह हर एक मरीज से इससे अधिक बिल वसूलते हैं।
अस्पताल, होटल्स, हाईराइज इमारतों में आग की घटना से बचाने के लिए फायर सेफ्टी सिस्टम लगाना अनिवार्य होता है। इसमें बिल्डिंग की ऊंचाई और आकार के अनुसार स्प्रिंगर, हाइड्रेंट सिस्टम, फायर इंस्टिग्यूशर उपकरण, फायर अलार्म सिस्टम लगे होते हैं। इससे आगजनी की घटना होने पर तुरंत काबू पाया जा सके।