पटना
नौकरी में तो जरूरी है, लेकिन राजनीति से अवकाश लेना बहुत मुश्किल होता है। आजकल लालू प्रसाद यादव के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। विरोधी बार-बार राजनीति की पिच से बाहर करने की कोशिश करते हैं, लेकिन लालू हैं कि हटने को तैयार नहीं। असल में विरोधियों के लिए लालू नहीं, लालू नाम ही काफी है। वो अपनी जीत का कारण भी लालू को ही मानते हैं, लेकिन लालू के सक्रिय रूप को नहीं चाहते। आजकल लालू का ठिकाना दिल्ली में बेटी मीसा का घर है, लेकिन मन उनका बिहार में रमता है। मौका चाहे चुनाव का हो या न्यायालय में उपस्थिति का, पटना आने का एक भी मौका नहीं चूकते। इस बार पटना आने पर अपनी सबसे पुरानी जीप चलाते अचानक घर से निकले तो लोग हैरान रह गए। जीप चलाने के बाद लालू संदेश दे गए कि सभी ड्राइवर हैं। बिहार की राजनीति में लालू प्रासंगिक हैं। विपक्षी अपनी जीत का कारण जनता में लालू-राबड़ी राज का डर बताते हैं और लालू की राजनीतिक विरासत संभाले उनके छोटे पुत्र तेजस्वी यादव भी कुछ ऐसा ही समझते हैं। इसलिए पिछले विधानसभा के आम चुनाव में लालू का नाम पोस्टर तक से गायब कर दिया, लेकिन एनडीए उनका नाम जिंदा किए रहा और जीत राजद (राष्ट्रीय जनता दल) से चंद कदम दूर जाकर ठिठक गई। इस बार उपचुनाव में लालू नहीं माने और तारापुर व कुशेश्वरस्थान में जाकर सभा तक कर आए। जीत फिर भी एनडीए की झोली में ही गई। ठीकरा इस बार भी लालू के सिर फूटा कि वो नहीं आते तो लगभग साढ़े तीन हजार की तारापुर की हार, जीत में बदल जाती। उपचुनाव के दौरान सत्ता में भगदड़ मचा देने और महीना भर पटना में रहने के दावे हवा हो गए। हार के बाद मन में पटना रहने की लालसा दबाए लालू दूसरे ही दिन दिल्ली लौट गए। फिर उनके बीमार होने की बातें बाहर आने लगीं। हालत गंभीर होने की बात आम हो गई।
लेकिन मंगलवार को सिविल कोर्ट में पेशी के कारण एक दिन पहले लालू पटना आ गए। कोर्ट के अलावा पार्टी कार्यालय में छह टन की लालटेन के अनावरण का भी कार्यक्रम था। बातों के अलावा अपनी गतिविधियों से भी अपनी ओर ध्यान खींचने वाले लालू इस बार कुछ अलग मूड में थे। पेशी के अगले दिन अपनी पहली जीप जो उन्होंने सेना से 1977 में सेकंड हैंड खरीदी थी, उसे देखने पास पहुंचे और फिर उस पर बैठ कर सरकारी आवास के भीतर ही चलाने लगे। पत्नी राबड़ी और बेटे तेजस्वी ने रोकने की कोशिश की, तो मानना तो दूर गेट खुलवा कर बाहर निकल गए। इधर जीप बाहर निकली, उधर खबर। प्रफुल्लित चेहरा कहीं से भी बीमार नहीं लग रहा था। लौटने के बाद उन्होंने दार्शनिक भाव लिए एक ट्वीट भी दाग दिया कि इस संसार में जन्मे सभी लोग किसी न किसी रूप में ड्राइवर ही तो हैं। आपके जीवन में प्रेम, सद्भाव, सौहार्द, शांति, सब्र, न्याय और खुशहाली रूपी गाड़ी सबको साथ लेकर सदा मजे से चलती रहे। गाड़ी के बहाने अपनी रफ्तार दिखा लालू, नीतीश पर कटाक्ष करते हुए दिल्ली लौट गए हैं। यह सही है कि राजद को अब उसका वारिस मिल गया है। बिना लालू के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सबसे बड़ा दल बनाकर तेजस्वी ने खुद को साबित भी कर दिया है। बड़े भाई तेजप्रताप के बगावती सुर और बहन मीसा भारती की तेजी को भी थाम लिया है। मंच और पोस्टर से लालू को गायब करने के बाद भी 75 सीटें हासिल कीं। कहा तो यह भी जा रहा है कि इस उपचुनाव में तेजस्वी नहीं चाहते थे कि लालू बिहार आएं और लालू-राबड़ी राज का हथियार फिर विपक्ष को मिले, लेकिन पिता के आगे उनकी एक न चली। घोषित नतीजे भले ही सत्तापक्ष के जातिगत समीकरणों में भारी पड़ने की वजह हों, लेकिन तेजस्वी को लालू के कदम ही भारी लगे। हालांकि लालू की मौजूदगी अभी भी अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए काफी है। बुधवार को जीप चलाने के बाद पटना में पार्टी कार्यालय में उन्होंने अपने चुनाव चिह्न् लालटेन के छह टन के प्रतीक को जलाकर कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया और यह संदेश दिया गया कि यह लालू का प्रतीक है, कभी नहीं बुझने वाली। लालू दिल्ली में नहीं रहना चाहते।