भोपाल
राज्य आनंद संस्थान एमओयू के तीन साल बाद भी प्रदेशवासियों में खुशी का लेवल नहीं जान पाया है। राज्य आनंद संस्थान ने प्रदेशवासियों में खुशी का स्तर जानने के लिए लिए तीन साल पहले आईआईटी खड़गपुर के साथ एक करार किया था। इसके लिए संस्थान की ओर से करीब 40 लाख रुपए का शुल्क भी दिया गया था। इतना ही नहीं इस पूरी कवायद में सेमीनार, एक्सपर्ट व रिसर्च के नाम पर प्रदेश का करोड़ों रुपए खर्च हुआ था। बावजूद इसके राज्य आनंद संस्थान अभी तक अपने इस करार पर काम शुरू नहीं कर पाया है।
गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में 2016 में आनंद मंत्रालय की स्थापना की गई थी। ऐसा करने वाला एमपी देश में पहला राज्य था। इसके बाद इसे राज्य आनंद संस्थान बनाया गया। 2018 में धर्मस्व और आनंद विभाग को मिला कर अध्यात्म विभाग बना दिया गया।
अनुबंध के बाद प्रदेशवासियों में खुशी का स्तर कई मानकों पर परखा जाना था। इनमें उनका कार्य क्षेत्र, उससे जुड़े मसले और तरक्की शामिल थी। इसके साथ ही परिवारवालों और दोस्तों से संबंध कैसे, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य कैसा है इस बात की भी जानकारी जुटानी थी। सामाजिक सरोकार और धर्म और अध्यात्म में रुचि पर भी चर्चा होनी थी।
बीते साल 2020 में आईआईटी और आईआईएम के पूर्व प्रोफेसर राजेश पिलानिया के नेतृत्व में खुशहाली के स्तर को लेकर एक अध्ययन किया गया था। इसके बाद जारी रिपोर्ट में मप्र को हैप्पीनेस इंडेक्स में 28 वीं रैंकिंग मिली थी। वहीं मिजोरम और पंजाब जैसे छोटे राज्य इस मामले में सबसे आगे रहे थे। कोरोना का भी मप्र के लोगों पर विपरीत प्रभाव पड़ा था। कोरोना से खुशियों पर पड़े असर के मामले में मप्र आठवें नंबर पर रहा था।

