ऐसा माना जाता है कि अगर आप नए घर का निर्माण कर रहे हैं तो वहां वास्तु दोष निवारण करना बेहद जरूरी होता है, जिससे कि आप भविष्य में होने वाले वास्तु दोषों से बच सके। वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण में होने वाले उन सभी दोषों को दूर करने के उपाय बताए गए हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसे खास उपाय के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में शायद ही आपने पहले कभी सुना होगा।
कहते हैं कि जब घर का निर्माण करना हो तो वहां बछड़े वाली गाय को लाकर अगर बांध दिया जाए तो वहां मौजूद वास्तु दोष दूर हो जाता है और बिना किसी बाधा के सारे कार्य पूरे हो जाते हैं। हमारी भारतीय संस्कृति में गाय के प्रति आस्था को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि गाय सहज रूप से भारतीय जनमानस में रची-बसी है। यहां रहने वाला हर व्यक्ति गोसेवा को एक कर्तव्य के रूप में अपनाता है। गाय सृष्टिमातृका कही जाती है। वास्तु ग्रंथ 'मयमतम्' में कहा गया है कि भवन निर्माण का शुभारंभ करने से पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बांधना चाहिए, जो सवत्सा यानि बछड़े वाली हो। नवजात बछड़े को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमि पर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वहां होने वाले समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही मान्यता वास्तु प्रदीप, अपराजितपृच्छास आदि ग्रंथों में भी है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेती है तो उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है। तो वहीं वास्तु के अनुसार जहां वो अपने बच्चे को बैठकर दुलार करेगी तो उस जगह से सारे वास्तु दोष दूर हो जाएंगे।
ऐसा भी माना जाता है कि जिस घर में गाय की सेवा होती है, वहां पुत्र-पौत्र, धन, विद्या, आदि सुख जो भी चाहिए मिल जाता है। गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। इससे घरों में सर्व बाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। बच्चों में भय नहीं रहता। विष्णु पुराण में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गए तो नंद दंपति ने गाय की पूंछ घुमाकर उनकी नज़र उतारी और भय का निवारण किया।
पद्मपुराण और कूर्मपुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लांघकर नहीं जाना चाहिए। ऐसा माना गया है कि अगर आप किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिए जा रहे हैं तो उस समय गाय के रंभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है। संतान-लाभ के लिए गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है। शिवपुराण एवं स्कंदपुराण में कहा गया है कि गोसेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता।
ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि गोधूलि वेला विवाहादि मंगल कार्यों के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त है। जब गाय जंगल से चरकर वापस घर को आती हैं, उस समय को गोधूलि वेला कहा जाता है। गाय के खुरों से उठने वाली धूल राशि समस्त पाप-तापों को दूर करने वाली है।