Saturday, December 2

जब रेलवे को सुप्रीम कोर्ट ने खूब सुनाया- अपनी संपत्ति की रक्षा खुद करो, हाथ पर हाथ रखकर मत बैठो

जब रेलवे को सुप्रीम कोर्ट ने खूब सुनाया- अपनी संपत्ति की रक्षा खुद करो, हाथ पर हाथ रखकर मत बैठो


नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में रेलवे की उस जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने के लिए सोमवार को रेलवे की खिंचाई की, जहां एक रेल लाइन का निर्माण होना है। शीर्ष अदालत ने कहा कि अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करना रेलवे का ''वैधानिक दायित्व'' है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ''सार्वजनिक परियोजना'' को आगे बढ़ाना है और प्राधिकारियों को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए थी।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा, ''परियोजना को आगे बढ़ाना है। यह एक सार्वजनिक परियोजना है। आप अपनी योजनाओं और बजट व्यवस्था का मजाक बना रहे हैं। जो अतिक्रमण कर रहे हैं उन्हें हटायें। हटाने के लिए कानून है। आप उस कानून का प्रयोग नहीं कर रहे हैं।'' पीठ ने रेलवे की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) के एम नटराज से कहा, ''यह आपकी संपत्ति है और आप अपनी संपत्ति की रक्षा नहीं कर रहे हैं। अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करना आपका एक वैधानिक दायित्व है।''

शीर्ष अदालत दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गुजरात और हरियाणा में रेलवे की जमीनों से अतिक्रमण हटाने से संबंधित मुद्दे उठाए गए हैं। गुजरात के मामले में, याचिकाकर्ताओं ने पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि गुजरात उच्च न्यायालय ने यथास्थिति बनाये रखने का अपना अंतरिम आदेश वापस ले लिया था और पश्चिम रेलवे को सूरत-उधना से जलगांव तक की तीसरी रेल लाइन परियोजना पर आगे बढ़ने की अनुमति दी थी। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत का रुख किया जिसने गुजरात में इन 'झुग्गियों' के ध्वस्तीकरण पर यथास्थिति प्रदान की थी।

दूसरी याचिका हरियाणा के फरीदाबाद में रेल लाइन के पास 'झुग्गियों' को तोड़े जाने से संबंधित है। फरीदाबाद मामले में, शीर्ष अदालत ने पहले उन लोगों के ढांचों को ढहाये जाने पर यथास्थिति प्रदान की थी, जिन्होंने हटाये जाने पर रोक के अनुरोध को लेकर अदालत का रुख किया था। सोमवार को सुनवाई के दौरान एएसजी ने पीठ से कहा कि रेलवे के पास उसकी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों के पुनर्वास की कोई योजना नहीं है। उन्होंने 'प्रधानमंत्री आवास योजना' का जिक्र किया जो पात्रता के अधीन है। एएसजी ने कहा कि राज्य को पुनर्वास के पहलू पर विचार करना होगा।

पीठ ने कहा कि कार्पोरेशन, राज्य और रेलवे को एकसाथ बैठकर एक योजना बनानी चाहिए और फिर अदालत को इसके बारे में सूचित करना चाहिए। एएसजी ने कहा, ''रेलवे के दृष्टिकोण से, ये सभी लोग अनधिकृत रूप से रहने वाले हैं और यह एक अपराध है।'' पीठ ने कहा, ''क्या आपने इस पर कार्रवाई की? क्या आपने उन्हें हटाने के लिए अपने वैधानिक दायित्व का निर्वहन किया? क्या आपने सार्वजनिक परिसर अधिनियम लागू किया?'' नटराज ने कहा कि रेलवे की ओर से कुछ ''चूक'' हुई है कि उन्होंने इस पर पहले कोई कार्रवाई नहीं की और अब मुद्दा पुनर्वास का है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *