Saturday, April 1

उज्ज्वला योजना आने से प्रदेश में केरोसिन का कोटा मात्र चार करोड़ लीटर रहा

उज्ज्वला योजना आने से प्रदेश में केरोसिन का कोटा मात्र चार करोड़ लीटर रहा


इंदौर
 केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत देश के गरीब परिवारों को मुफ्त में रसोई गैस कनेक्शन देने का मध्यप्रदेश में सकारात्मक असर देखने को मिला है। पिछले कुछ सालों में यहां केरोसिन (मिट्टी का तेल) का कोटा 70 प्रतिशत तक सिमट गया है। प्रदेश में किसी समय केरोसिन का कोटा 13 करोड़ लीटर से अधिक था, जो चार करोड़ लीटर पर आ गया है।

इंदौर जैसे जिलों में तो केरोसिन के उपभोक्ता अब नाममात्र के रह गए हैं। जिले में 15-20 साल पहले केरोसिन का कोटा करीब 32 लाख लीटर था। गांवों में बढ़ते विद्युतीकरण के बाद घटते-घटते यह 20 लाख, 15 लाख, फिर 12 लाख लीटर पर आ गया। उज्ज्वला योजना आने के बाद चार-पांच साल में यह 4 लाख लीटर से होते हुए 2.64 लाख लीटर पर आ गया है। सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत केरोसिन वितरण की व्यवस्था की हुई है। उचित मूल्य दुकानों के जरिये राशन के साथ ही पात्र और जरूरतमंद उपभोक्ताओं को केरोसिन दिया जाता है। इंदौर में कुछ प्राथमिक सहकारी उपभोक्ता भंडारों पर तो 10-20 लीटर ही केरोसिन का कोटा रह गया है।

कुछ उपभोक्ता भंडार ऐसे भी हैं जिन्होंने पिछले कुछ महीनों में एक लीटर भी केरोसिन नहीं उठाया। इंदौर में यह बदलाव इसलिए आया है कि यहां सरकार की उज्जवला योजना के बाद लक्ष्य से 119 प्रतिशत काम हुआ है। इस तरह उज्जवला योजना के पहले चरण में ही इंदौर में इतना काम हुआ कि दूसरे चरण में इंदौर को कोई लक्ष्य नहीं दिया गया। खाद्य, उपभोक्ता संरक्षण और नागरिक आपूर्ति विभाग के संचालक दीपक सक्सेना बताते हैं कि प्रदेश में 1.82 करोड़ परिवार हैं। इनमें से 86 प्रतिशत परिवारों में एलपीजी का कवरेज हो चुका है। दिसंबर तक हम इसे 95 प्रतिशत करने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।

दिल्ली, चंडीगढ़ और राजस्थान में केरोसिन को अलविदा

दिल्ली, चंडीगढ़ और राजस्थान में तो केरोसिन को अलविदा कह दिया गया है। इन शहरों और राज्यों में केरोसिन देखने को भी नहीं मिलता। बताया जाता है कि जरूरत न होने से यहां केंद्र से केरोसिन का कोटा ही नहीं लिया जाता। मध्यप्रदेश के इंदौर, भोपाल जैसे शहरों में आने वाले समय में यह हालात बन सकते हैं, लेकिन प्रदेश में केरोसिन को बंद करने का फैसला तो शासन स्तर पर ही हो सकता है। अधिकारियों का कहना है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि के कई जिलों में अब भी केरोसिन की जरूरत बनी हुई है। इसीलिए प्रदेश स्तर पर राज्य शासन एकदम से केरोसिन बंद करने की स्थिति में नहीं है। एलपीजी कनेक्शन तो गांवाें में भी बहुत हो चुके हैं, लेकिन कई बार इनकी रिफिलिंग की समस्या भी रहती है। इस कारण अादिवासी और ग्रामीण क्षेत्र में कई गरीब और जरूरतमंद परिवारों को खाना बनाने से लेकर बिजली के लिए केरोसिन पर निर्भर रहना पड़ता है।

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