मुंगेर/पटना
बिहार में उगाहीबाज डीआईजी की आखिकार वर्दी छिन गई। 2007 बैच के आईपीएस अधिकारी मोहम्मद शफीउल हक को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। आरोप है कि जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के नाम पर पुलिस विभाग में ही काम करनेवाले अधिकारियों से डीआईजी शफीउल वसूली कर रहे थे। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुंगेर के डीआईजी शफीउल हक ने बिहार पुलिस के एक अधिकारी हरिशंकर कुमार को वॉट्सऐप कॉल कर पैसे की डिमांड की। उन्होंने हरिशंकर से कहा कि 'तुम्हारे खिलाफ ऊपर से शिकायत आई है। केस के रिव्यू में मैंने पाया कि तुमने गलती की है। अगर तुम मैनेज करना चाहते हो तो 15 लाख रुपए देने होंगे।' बातचीत के दौरान हरिशंकर ने कहा कि '15 लाख मैं नहीं दे सकता, डेढ़-दो लाख होता तो दे भी देता।' आमतौर पर वॉट्सऐप कॉल रेकॉर्ड नहीं होता है मगर हरिशंकर ने समझदारी दिखाई और दूसरे फोन से पूरी बातचीत को रेकॉर्ड कर लिया। इस दौरान डीआईजी शफीउल ने कहा कि 'ऊपर से आदेश है कि कार्रवाई की जाए।' तब हरिशंकर ने पूछा लिया कि 'किसने दबाव बनाया है?' इसपर शफीउल ने मुंगेर सांसद का नाम लिया और कहा कि 'ललन सिंह का आदेश है।'
आखिकार 6 महीने बाद शफीउल निलंबित
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुंगेर सांसद का नाम आने के बाद हरिशंकर कुमार चौकन्ना हो गए। उन्होंने तत्काल ललन सिंह से बात की और डीआईजी शफीउल से हुई बातचीत के बारे में बताया। बातचीत की रेकॉर्डिंग भी हरिशंकर ने ललन सिंह को दे दिया। रेकॉर्डिंग को सुनने के बाद ललन सिंह ने उसे नीतीश कुमार को दे दिया। मुख्यमंत्री ने डीजीपी को ऑडियो को जांच करने का निर्देश दे दिया। बाद में आर्थिक अपराध शाखा (ईओयू) ने मामले की जांच की। इस दौरान केस से जुड़े लोगों की गवाही हुई, जिसमें हरिशंकर कुमार भी शामिल हुए। मुंगेर के एसपी मानवजीत ढिल्लो ने भी गवाही दी। रिपोर्ट के मुताबिक मानवजीत सिंह ढिल्लो ने कहा कि बहुत सारे थानाध्यक्षों ने इस बात की शिकायत की है कि डीआईजी शफीउल पैसे की डिमांड करते हैं। गवाही और सबूत जुटाने के करीब छह महीने बाद डीआईजी शफीउल को निलंबित किया गया।
प्राइवेट स्टाफ रखकर वसूली का धंधा
आर्थिक अपराध शाखा की जांच में एक और चौंकानेवाली बात सामने आई है। इसमें पता चला कि डीआईजी शफीउल हक एएसआई मोहम्मद उमरान और एक निजी आदमी के जरिए मुंगेर रेंज में आनेवाले जूनियर पुलिस पदाधिकारियों और कर्मचारियों से अवैध उगाही कराते थे। ईओयू ने अपने जांच में पाया कि एएसआई मोहम्मद उमरान के गलत काम की जानकारी होते हुए भी डीआईजी शफीउल हक ने कोई कार्रवाई नहीं की। उनके इशारे पर पुलिस विभाग के अधिकारियों से वसूली का धंधा चल रहा था।