नई दिल्ली
कानूनी सहायता देश के हर व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, उसे यह मिलनी ही चाहिए। यह कहना है सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित का। न्यायमूर्ति ललित जून 2021 से राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नाल्सा) के कार्यकारी अध्यक्ष हैं और देश के अगले मुख्य न्यायाधीश के तौर पर अगस्त 2022 में शपथ लेंगे। नाल्सा के तहत इस तरह की दर्जनों कोशिश हो रही हैं कि सुदूर गांव का आखिरी आदमी भी कानूनी मदद से वंचित नहीं रहना चाहिए।
जब जून में मैं कानूनी सहायता का कार्यकारी चेयरमैन बना तो मैंने देखा कि कोविड-19 के प्रतिबंधों के कारण शारीरिक रूप से संपर्क करना संभव नहीं था। जो भी कानूनी मदद दी जा रही थी वह व्यक्ति के गिरफ्तार होने के बाद ही दी जा रही थी। यह कुल कानूनी सहायता का महज एक प्रतिशत था। मैंने सभी जिला, राज्य और ताल्लुक स्तर के कानूनी प्राधिकारों, समितियों के चैयरमैन की बैठक बुलाई। यह तय किया गया कि यदि कानूनी सहायता का ब्योरा प्राथमिकी में लिखवा दिया जाए तो अभियुक्त और संदिग्ध को थाने में शुरुआत से ही कानूनी मदद मिल सकती है।
हमने गृह मंत्रालय से संपर्क किया और वह राजी हो गया। आज हर एफआईआर में कानूनी सहायता कैसे और कहां से लें इसका ब्योरा, फोन नंबर और दफ्तर का पता सब कुछ लिखा जाने लगा है। इसके अलावा हर थाने के प्रवेश द्वार और अंदर एक बोर्ड लगाया गया है जहां कानूनी मदद लेने की जानकारी मौजूद है।
देखिए, हमने अध्ययन किया और देखा कि ग्रामीण क्षेत्र मनीआर्डर पर चल रहे हैं जो शहरों में काम करने गए उनके परिजन भेजते हैं। हमने देखा कि डाकघर के जरिये यह काम किया जा सकता है। इसे लेकर डाक और टेलीग्राफ विभाग और केंद्रीय गृह मंत्रालय से संपर्क किया गया और मंत्रालय इसके लिए तैयार हो गए। अब थाने की तरह हर डाकघर में कानूनी सहायता के बोर्ड लगाए गए हैं।
आपराधिक मामलों में अभियुक्त को 24 घंटे के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है, क्या वहां से उसे कानूनी सहायता मिलनी शुरू हो गई है, क्योंकि कानूनी सहायता का प्रावधान ट्रायल की अवस्था से शुरू होता है?

