Sunday, December 21

Decreasing enrollment in schools became a cause for concern

Decreasing enrollment in schools became a cause for concern


दिल्ली
बीते दस वर्षों के दौरान स्कूलों में नामांकन के आंकड़ों में करीब 33 लाख की गिरावट आई है. बच्चों के मामले में यह आंकड़ा और ज्यादा है. एक ताजा अध्ययन से यह बात सामने आई है.देश में वर्ष 2012-13 में शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई) शुरू की गई थी. उस साल स्कूल जाने वाले छात्र-छात्राओं की आबादी 25.48 करोड़ थी. वर्ष 2019-20 के दौरान यह घट कर 25 करोड़ पहुंच गई. फिलहाल उसके बाद के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं. दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन प्लानिंग ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन (एनआईईपीए) के पूर्व प्रोफेसर अरुण मेहता ने इस मुद्दे पर लंबे अध्ययन के बाद "क्या भारत में स्कूल नामांकन में गिरावट चिंता का कारण है? … हाँ, यह है” शीर्षक अपने शोध पत्र में कहा है कि भारत में स्कूल जाने वालों की आबादी में गिरावट चिंता की वजह है. उनका कहना है कि बीते एक दशक से पहली से बारहवीं कक्षा तक हर स्तर पर स्कूल जाने वालों की तादाद लगातार कम हो रही है. नामांकन में गिरावट बाल आबादी में गिरावट से कहीं ज्यादा है. लेकिन केंद्र सरकार इस गिरावट की वजह का पता लगा कर उनको दूर करने के बजाय वर्ष 2018-19 के आंकड़ों का हवाला देते हुए स्थिति में सुधार के दावे कर रही है. उसी साल नामांकन में सबसे कम गिरावट दर्ज की गई थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते एक दशक के दौरान वर्ष 2015-16 में सबसे अधिक नामांकन देखा गया.

उस साल यह 26.06 करोड़ तक पहुंच गया. वर्ष 2018-19 में यह सबसे कम 24.83 करोड़ हो गया. सरकार फिलहाल इस बात का पता लगा रही है कि वर्ष 2018-19 की तुलना में 2019-20 में कुल नामांकन में 2.6 लाख की वृद्धि कैसे हुई. उस वर्ष यूडीआईएसई द्वारा कवर किए गए स्कूलों की संख्या में 43,292 की कमी के बावजूद वर्ष 2019-20 में नामांकन में 2018-19 की तुलना में वृद्धि दर्ज की गई. मेहता का कहना है कि बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में एक साल भारी नामांकन में भारी गिरावट के बाद अगले शिक्षण सत्र में तेजी से वृद्धि से नामांकन के आंकड़ों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े होते हैं. उन्होंने नामांकन के आंकड़ों की गुणवत्ता सुधारने पर जोर दिया है ताकि सही तस्वीर सामने आ सके. सरकारी रिपोर्ट कुछ समय पहले एक सरकारी रिपोर्ट में भी स्वीकार किया गया था कि प्राथमिक कक्षाओं के बाद बच्चों का नामांकन धीरे धीरे कम होता जाता है. छठी से आठवीं कक्षा में सकल नामांकन अनुपात जहां 91 फीसदी है, वहीं नौवीं व दसवीं में यह महज 79.3 फीसदी. 11वीं और 12वीं कक्षा के मामले में यह आंकड़ा 56.5 फीसदी है.

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