जबलपुर
मध्यप्रदेश में स्थित केंट बोर्ड की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया के हालातों में केंट बोर्ड एरिया में बढ़ती आबादी के बीच मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराना मुश्किल हो रहा है। दरसअल, एमपी के महू, मुरार(ग्वालियर), पचमढ़ी, सागर एवं जबलपुर केंट बोर्ड को मिलने वाली ‘ग्रांट इन एड’ में केंद्र सरकार ने भारी कटौती कर दी है। यहां एक बड़ी आबादी बसती है, जिनके लिए तमाम संसाधनों की दरकार है, लेकिन इनकी उम्मीद पर आर्थिक तंगी अड़ंगा डाल रही है। ग्रांट इन एड पर लगातार कैंची चल रही है और आय के भी साधन सीमित हैं। स्थिति यह कि बोर्ड अपना खर्च ही चला पाए तो गनीमत है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विकास की रफ्तार क्या होगी।
लगभग सभी केंट बोर्ड एरिया में बजट के अभाव में विकास कार्य ठप पड़े हैं। बजट न होने के कारण यहां सभी वार्डों में सड़क, सफाई, नाली निर्माण, भवनों की मरम्मत, स्ट्रीट लाइट, पेयजल सहित विभिन्न कार्य ठप पड़े हुए हैं। जबलपुर में विकास कार्य न होने से नागरिक आंदोलन भी करते रहते हैं।
जबलपुर केंट बोर्ड विगत कई वर्षों से बजट की तंगी से जूझ रहा है। यहां ज्यादातर विकास कार्य ग्रांट इन एड पर निर्भर हैं, पर इसमें भी लगातार कटौती हुई है। रक्षा मंत्रालय पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि बोर्ड स्वयं की आय बढ़ाएं, जबकि आय के संसाधन सीमित हैं। हालात यह हंै कि वर्तमान स्थिति में विकास कार्यों की भी वरीयता तय करनी पड़ती है। बात जहां किसी बड़ी योजना की आती है, तो बजट के लिए केंट बोर्ड को रक्षा मंत्रालय का ही मुंह ताकना पड़ता है। अपनी आय के नाम पर टैक्स ही एकमात्र जरिया है, लेकिन उसे बढ़ाए जाने की एक सीमा है। जितनी आमदनी फिलहाल हो रही है, उससे कर्मचारियों की तनख्वाह,रखरखाव व अन्य खर्च ही निकालना मुश्किल हो रहा है।

