भोपाल
आदिवासियों को शराब बनाने का मौका देकर उसे रोजगार से जोड़ने और उनके द्वारा निर्मित शराब को हेरिटेज शराब का दर्जा देकर उसकी ब्रांडिंग कराने का सरकार का निर्णय अमल में नहीं आ पा रहा है। वाणिज्यिक कर विभाग ने इसके लिए 15 अप्रेल की टाइमलाइन तय की थी पर अब तक पायलट जिलों अलीराजपुर, डिंडोरी में शराब उत्पादन शुरू नहीं हो सका है। उधर विभाग ने खंडवा जिले की एक तहसील को भी इस प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया है।
आदिवासियों द्वारा तैयार की जाने वाली ताड़ी को हेरिटेज मदिरा का स्वरूप दिलाने के लिए सरकार ने 50 लाख से अधिक राशि डिंडोरी और अलीराजपुर जिलों में खर्च की है लेकिन अभी यह मूर्त रूप नहीं ले सकी है। बताया गया कि इन जिलों में शराब बनाने के लिए चिन्हित किए गए एक से दो प्लांट्स में अभी फाउंडेशन वर्क ही पूरा नहीं हो सका है। इस कारण इसमें देरी हुई है और यहां शराब उत्पादन 25 अप्रेल के बाद ही शुरू हो पाने की स्थिति बताई जा रही है।
पायलट प्रोजेक्ट वाले जिलों में आबकारी अफसरों द्वारा स्व सहायता समूहों के माध्यम से शराब बनाने की ट्रेनिंग दिलाने का काम किया जा रहा है जिसमें उन्हें यह बताया जा रहा है कि किस तरह से हेरिटेज शराब का निर्माण किया जाएगा और उसमें किन पदार्थों का उपयोग कितनी मात्रा में किया जा सकेगा? जो समूह इसके लिए तैयार किए जा रहे हैं, उन्हें प्रतिदिन 100 लीटर शराब के उत्पादन की छूट दी जाएगी। इसका लुक हेरिटेज वाला रहे और नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों की मात्रा का उपयोग कम हो, इस पर फोकस करने के लिए भी कहा गया है। इस बीच खंडवा जिले की खालवा तहसील में आदिवासी गांव अधिक होने के कारण वहां भी इस प्रोजेक्ट पर काम इसी माह शुरू हो गया है और खंडवा के अधिकारी भी इसके लिए समूह बनाने में जुट गए हैं।
SHG में महिलाओं को तवज्जो, ब्रांडिंग पर भी फोकस
अभी सरकार ने धान की भूसी, लकड़ी या गैस का उपयोग कर हेरिटेज शराब बनाने की शुरुआत करने की परमिशन दी है। यह शराब टैक्स फ्री रहेगी। सरकार आदिवासियों की इस शराब की ब्रांडिंग कराएगी। शराब तैयार करने के लिए जो स्व सहायता समूह तैयार किए जा रहे हैं, उनका खर्च सरकार उठा रही है। इन समूहों के लिए एक शर्त यह भी तय की गई है कि समूह में कम से कम चालीस प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी होगी।

