नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला का वीडियो रिकॉर्ड करने के मामले में आरोपी को राहत दी है। कोर्ट का कहना है कि अगर किसी महिला का फोटो या वीडियो ऐसे समय में लिया जाता है, जहां वह निजी गतिविधि में नहीं है तो उसे IPC की धारा 354सी के तहत वॉयरिज्म का दोषी नहीं माना जा सकता। साथ ही अदालत ने कहा है कि चार्जशीट दाखिल करते समय पुलिस और आरोप तय करते समय ट्रायल कोर्ट को सावधान रहना चाहिए था।
वॉयरिज्म का मतलब है किसी महिला को तब चुपके से देखना या ताक झांक करना, जब वह निजी गतिविधियों में शामिल हो। यह अपराध है। मामले पर सुनवाई कर रहे जस्टिस एनके सिंह और जस्टिस मनमोहन ने आरोपी के खिलाफ केस बंद कर दिया। उसके खिलाफ वॉयरिज्म के आरोप लगे थे। आरोप थे कि उसने महिला का वीडियो तब रिकॉर्ड किया था, जब वह विवादित संपत्ति में प्रवेश कर रही थी।
कोर्ट ने जांच की थी कि एफआईआर और चार्जशीट में वॉयरिज्म का कोई अपराध बताया गया है या नहीं। कोर्ट ने समझाया कि वॉयरिज्म तब लागू होता है, जब निजी गतिविधि में महिला को चुपके से देखा जा रहा हो या रिकॉर्ड किया जा रहा हो। कोर्ट ने पाया कि इस मामले में ऐसा कोई प्राइवेक्ट एक्ट नहीं है। कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने भी माना है कि एफआईआर से वॉयरिज्म का पता नहीं चला है। हालांकि, उच्च न्यायालय ने फिर भी आरोपी अपीलकर्ता को डिस्चार्ज करने से इनकार कर दिया था, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति ली।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान गलत तरीके से रोके जाने के आरोपों की भी जांच की गई। कोर्ट ने कहा कि शिकायतकर्ता को किराएदार नहीं दिखाया गया था। साथ ही कोर्ट ने कहा कि पेश जानकारी से पता चलता है कि वह होने वाले किराएदार के तौर पर प्रॉपर्टी देखने आई थी।
कोर्ट ने पाया कि एफाईआर पूरी तरह से संपत्ति को लेकर परिवार के विवाद से जुड़ी है। अदालत ने कहा कि अगर मुद्दों को क्रिमिनल केस के बजाए सिविल उपायों से सुलझाया जाना चाहिए था। बेंच ने उन मामलों में चार्जशीट दाखिल करने पर नाराजगी जाहिर की, जिनमें पक्का शक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इसके कारण पूरे आपराधिक न्याय व्यवस्था पर दबाव पड़ता है।
क्या था मामला
यह मामला कोलकाता के सॉल्ट लेक की एक रिहायशी संपत्ति का है, जिसे लेकर दो भाइयों में लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस मामले में आरोपी तुहिन कुमार बिस्वास सह मालिक का बेटा और संपत्ति को लेकर हुए झगड़े के चलते ही यह एफआईआर दाखिल की गई थी।
साल 2018 में आरोपी के पिता ने अपने भाई के खिलाफ सिविल सूट दाखिल किया था। 29 नवंबर 2018 को सिविल कोर्ट ने दोनों पक्षों को साझा अधिकार रखने और कोई थर्ड पार्टी राइट्स नहीं बनाने के निर्देश दिए थे। यह आदेश उस समय भी लागू था, जब शिकायतकर्ता ममता अग्रवाल मार्च 2020 में संपत्ति पर पहुंची थीं।
इसके बाद अग्रवाल ने आरोपी के रिश्तेदार के कहने पर एफआईआर दर्ज कराई थी। उन्होंने आरोप लगाए थे कि आरोपी ने उन्हें जबरन रोका, धमकाया और बगैर उनकी सहमति के फोटो वीडियो बनाए। 16 अगस्त 2020 को पुलिस ने 354सी समेत अन्य धाराओं में केस दर्ज किया। ट्रायल कोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट की तरफ से डिस्चार्ज करने से इनकार किए जाने के बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

