Sunday, December 21

रैलियों से 30 साल बाद लौटी कांग्रेस के चेहरे की मुस्कान

रैलियों से 30 साल बाद लौटी कांग्रेस के चेहरे की मुस्कान


नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले प्रतिज्ञा रैलियों में जुट रही भीड़ को देखकर कांग्रेस उत्साहित है। तीस साल से भी ज्यादा अरसे के बाद पार्टी की जनसभाओं में इतनी भीड़ जुटी है। पर जनसभाओं में जुटती यह भीड़ कांग्रेस के लिए चुनौती बनती जा रही है, क्योंकि पार्टी के पास भीड़ को वोट में बदलने के लिए जमीनी स्तर पर संगठन नहीं है। वहीं, पार्टी के पास जिताऊ उम्मीदवारों का भी अभाव है। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ अभियान के जरिये कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा राजनीतिक अभियान को जमीन तक ले जाने की कोशिश कर रही हैं। महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देने के ऐलान के साथ उन्होंने लड़कियों को स्कूटी और आगंनवाड़ी कार्यकर्ताओं के मानदेय में वृद्धि का भी वादा किया है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि क्या कांग्रेस चुनाव में सत्ता की दहलीज तक पहुंच पाएगी?

सत्ता तक पहुंचने के लिए कांग्रेस को अपने वोट प्रतिशत को कम से पांच गुना बढ़ाना होगा। वर्ष 2017 के चुनाव में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को सिर्फ छह फीसदी वोट मिले थे। ऐसे में प्रियंका को वोट प्रतिशत को छह फीसदी से बढ़ाकर 30 प्रतिशत तक ले जाना होगा। प्रदेश में संगठन की स्थिति को देखते हुए महिला केंद्रित प्रचार के बावजूद लक्ष्य आसान नहीं है।कांग्रेस उत्तर प्रदेश में पिछले 32 साल से सत्ता से बाहर है। वर्ष 1989 में सत्ता से बाहर होने के बाद पार्टी के पास कोई वोट बैंक नहीं है। कभी दलित और मुसलमानों में मजबूत पैठ रखने वाली कांग्रेस का वोट बैंक बिखर चुका है। लगातार सत्ता से बाहर रहने की वजह से बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और नेता भी दूसरे दलों में चले गए। पार्टी में जो नेता बचे हैं, उनमें से ज्यादातर की कोई जमीनी पकड़ नहीं है और तालमेल का भी आभाव है।  कांग्रेस यूपी में सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है। पर उसके पास जिताऊ उम्मीदवार का आभाव है। ऐसे में सपा और बसपा से अलग चुनाव लड़ते हुए पार्टी भाजपा को चुनौती दे पाएगी, इसकी उम्मीद कम है। दरअसल, चुनाव में भाजपा विरोधी वोट उस उम्मीदवार के इर्दगिर्द घूमता है, जिसके भाजपा के खिलाफ जीतने की उम्मीद ज्यादा होती है।

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