लखनऊ
पिछड़ी जातियों के बीच अगणी के रूप में पहचानी जाने वाली कुर्मी जाति की प्रदेश की राजनीति में शुरू से ही मजबूत पकड़ रही है। राजनीति के साथ ही हर क्षेत्र में इस जाति की पैठ देखी जा सकती है। वर्ष 2022 के चुनाव में इस बिरादरी को साधने के पीछे जुटे सभी दलों को इनकी ताकत और एकजुटता का अहसास है। इनकी ताकत को समझने के लिए महज इतना ही काफी है कि आज राज्य से आठ निर्वाचित सांसद और 34 विधायक कुर्मी बिरादरी से हैं। निगमों, आयोगों, बोर्डों में भी इस बिरादरी के नेताओं की अच्छी तादाद है।
अलग-अलग उपनामों से यह बिरादरी प्रदेश के सभी हिस्से में जानी जाती है। पूर्वांचल के वाराणसी, मिर्जापुर, प्रयागराज मंडल के साथ ही समूचे बुंदेलखंड, रूहेलखंड, अयोध्या, लखनऊ मंडल में इस बिरादरी की राजनीतिक ताकत से सभी दल वाकिफ हैं। इस बिरादरी के नेताओं की मानें तो यह राज्य के करीब 150 विधानसभा सीटों पर सीधे असर डालते हैं। आबादी करीब 12 फीसदी बताते हैं, लेकिन इनकी आबादी को लेकर अलग-अलग बातें सामने आती हैं। राजनीतिक हल्के में इनकी आबादी करीब पांच फीसदी मानी जाती है।
आजादी के बाद यह बिरादरी लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रही थी। बाद के दिनों में यह सपा से जुड़ी। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जब भी सपा की सरकार बनी कुर्मी बिरादरी के दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा का बड़ा कद रहा। लंबे समय तक वह कुर्मी बिरादरी के दिग्गज नेता के रूप में प्रदेश में जाने जाते रहे। कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के दौर में ओम प्रकाश सिंह इस बिरादरी के बड़े नेता थे। ओम प्रकाश सिंह लंबे अरसे तक भाजपा में इस बिरादरी के इकलौते बड़े नेता रहे।