Saturday, July 27

BPSC : पटना हाईकोर्ट का आदेश, 30वीं न्यायिक सेवा की बची सीटों पर बहाली करें

BPSC : पटना हाईकोर्ट का आदेश, 30वीं न्यायिक सेवा की बची सीटों पर बहाली करें


 नई दिल्ली

पटना हाईकोर्ट ने न्यायिक अफसरों की नियुक्ति मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। कोर्ट ने अपने 53 पन्नों के फैसले में कहा है कि अगर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है तो राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी होगी कि वह पिछली नियुक्ति प्रक्रिया के बचे हुए रिक्त पदों को उसी प्रक्रिया में तैयार की गई अभ्यर्थियों के मेधा सूची से नियुक्ति करें। कोर्ट ने कहा कि जिनकी नियुक्ति कट ऑफ अंक से नीचे होने के कारण नहीं हो पाई थी। उन्हीं को मेघा सूची से नियुक्ति करें। न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह तथा न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की खंडपीठ ने ज्योति जोशी की ओर से दायर रिट याचिका को मंजूर करते हुए बुधवार को यह फैसला दिया। इस मामले में न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद ने फैसला दिया, जिस पर न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह ने अपनी सहमति दी।

गौरतलब है कि 2018 में 30वीं संयुक्त न्यायिक सेवा भर्ती परीक्षा के लिए 349 सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया गया था। बीपीएससी ने 351 सफल अभ्यर्थियों की मेधा सूची तैयार की थी जिसमें याचिकाकर्ता का भी नाम था।

भर्ती प्रक्रिया में अनुशंसित हुए 7 सफल अभ्यर्थी की नियुक्ति नहीं हुई, जिसके कारण 7 सीटें रिक्त रह गईं। उनमें 6 सीट अनारक्षित वर्ग की थी। याचिकाकर्ता ने केस दायर कर कोर्ट से गुहार लगाया कि बची 6 रिक्तियों में से एक सीट पर नियुक्ति की जाये।

– वर्ष 2018 में 349 सिविल जज के रिक्त पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन प्रकाशित हुआ था
– भर्ती प्रक्रिया में अनुशंसित हुए 7 सफल अभ्यर्थी की नियुक्ति नहीं हुई, 6 सीट अनारक्षित वर्ग की थी

पटना हाईकोर्ट प्रशासन, राज्य सरकार एवं बीपीएससी की तरफ से इस रिट याचिका का विरोध किया गया। उनका कहना था कि याचिकाकर्ता का मेधा अंक (516) न्यूनतम कट ऑफ अंक पाने वाले अनारक्षित कोटे से अंतिम चयनित अभ्यर्थी के मेधा अंक (517) से कम था। पटना हाईकोर्ट प्रशासन ने कहा कि मेधा सूची में सफल हुए लेकिन नियुक्ति से चूके सफल उम्मीदवारों के लिए कोई पूरक मेधा सूची बनाने का प्रावधान नहीं है। जबकि याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट पी के शाही ने कोर्ट को बताया कि हाईकोर्ट प्रशासन का यह कदम सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विरुद्ध है। कोर्ट ने न्यायहित में यह फैसला दिया।

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