नई दिल्ली
पाकिस्तान ने रणनीति बदलते हुए गैर-मुस्लिमों और प्रवासियों की हत्या से कश्मीर में खौफ का माहौल वापस लाना चाहता है। आतंकवादी पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर कई निर्दोष अल्पसंख्यकों की हत्या कर चुके हैं। यह पाकिस्तान की ही रणनीति है कि कश्मीर में आतंकवाद को स्थानीय युवाओं के गुस्से के रूप में प्रचारित किया जाए।
घाटी में आतंकियों ने बदली रणनीति
इसलिए उसने जैश और लश्कर जैसे अपने खूंखार आतंकी संगठनों को द रेजिस्टेंस फोर्स (TRF), लश्कर-ए-मुस्तफा, गजनवी फोर्स और अल-बद्र जैसे नाम देकर घाटी में खून बहाने के नापाक मंसूबे को आगे बढ़ाने में जुटा है। खासकर, टीआरएफ के पाकिस्तान प्रेरित आतंकियों ने घाटी में उधम मचा रखा है, जिससे भारत सरकार की चिंताएं बढ़ गई हैं। इससे निपटने के लिए एक तरफ घाटी में आतंकियों को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्पेशल ऑपरेशन चलाए जा रहे हैं तो दूसरी तरफ पाकिस्तान की चीख निकालने के लिए भी अंतरराष्ट्रीय मंचों का सहारा लिए जाने पर गंभीरता से योजना बनाई जा रही है।
एफएटीएफ में निकलेगी पाकिस्तान की चीख?
पूरी संभावना है कि भारत फ्रांस की राजधानी पैरिस में आयोजित होने वाली फाइनैंशल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की मीटिंग में पाकिस्तान को पूरी तरह निचोड़ दे। कश्मीर के पुंछ में सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ की हालिया घटना का हवाले से आंतकवाद का वित्तपोषण (Terrorism Financing) खत्म करने में पाकिस्तान की नाकामी को एफएटीएफ मीटिंग में उजागर किया जाना तय माना जा रहा है। वैसे भी मनी लॉन्ड्रिंग की गतिविधियों पर नजर रखने वाली यह अंतरराष्ट्रीय संस्था लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और हिज्बुल मुजाहिद्दीन जैसे आतंकी संगठनों और उनके मददगारों को दंडित करने में पाकिस्तान की उपलब्धियों का जायजा लेगी ही।
वित्तीय संकट के दलदल में धंसता पाकिस्तान
पाकिस्तान इस वक्त गहरे वित्तीय संकट में फंसा है। उसके पास सरकार चलाने का खर्च तक नहीं है। इस कारण वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के सामने बार-बार गिड़गिड़ा रहा है। द न्यूज इंटरनैशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान को चालू वित्त वर्ष के लिए कम से कम 23.6 अर डॉलर और अगले वित्त वर्ष के लिए 28 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता की जरूरत है। इतने पैसे उसे बाहर से ही जुटाने होंगे, लेकिन एफएटीएफ उसकी राह में बड़ी बाधा बनकर खड़ी है। पाकिस्तान दुनियाभर की मदद तो चाहता है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय नियमों की उसे परवाह नहीं। ऐसे में भारत में आतंकवाद को हवा देने का अंजाम तो उसे भुगतना ही होगा।
आतंकियों के मददगारों पर भी हो रही कड़ाई
ध्यान रहे कि चुन-चुनकर गैर-मुस्लिमों और प्रवासियों को मारे जाने के बाद आतंकियों के खिलाफ विशेष अभियानों में भारत के नौ सैनिक शहीद हो गए। सुरक्षा बलों के संयुक्त अभियान सीमाई जिलों पुंछ और रजौरी के जंगली क्षेत्रों में चल रहे हैं। हालांकि, आम नागरिकों की हत्या की हालिया वारदातों में लश्कर-ए-तैयबा समर्थित टीआरएफ की भूमिका उजागर हुई है, लेकिन सुरक्षा बलों के अभियान सिर्फ आतंकवादियों तक सीमित नहीं हैं। मामले से वाकिफ एक सूत्र ने हमारे सहयोगी अखबार द इकनॉमिक टाइम्स (ET) को बताया कि सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अब तक वैसे 600 से ज्यादा संदिग्धों को निशाने पर लिया है जो हिज्बुल, जमात और जैश से जुड़े हो सकते हैं।
सुरक्षा बलों की त्रिस्तरीय रणनीति
श्रीनगर में अधिकारियों ने उन इलाकों में इंटरनेट सेवाएं ठप करने का आदेश दिया है जहां आतंकियों के छिपे होने का संदेह है। एक तरफ श्रीनगर और उसके बाहरी इलाकों में मुठभेड़, अनवरत जारी तलाशी अभियान तो दूसरी तरफ आतंकियों द्वारा चुन-चुनकर आम नागिरकों की हत्या किए जाने से सुरक्षा बल दबाव में हैं। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, 'जम्मू-कश्मीर पुलिस ने सूचना दी है कि हालिया दौर की हिंसा पर काबू पाने के लिए वो त्रीस्तरीय रणनीति पर आगे बढ़ रहे हैं। एक तो सुरक्षा घेरे को बढ़ा दिया गया है और दूसरा हत्याओं के लिए जिम्मेदारी आतंकियों और आतंकी समूहों की पहचान की जा रही है। वहीं, प्रवासियों को शेल्टर कैपों में शिफ्ट किया जा रहा है।'