Saturday, July 27

ओवैसी को छोड़कर राजभर ने सपा से हाथ मिलाया

ओवैसी को छोड़कर राजभर ने सपा से हाथ मिलाया


यूपी
 
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश की सियासत में इस बार नए तुरुप का पत्ता हैं. वो हैदराबाद के चार मिनार के दायरे से बाहर निकल कर उत्तर प्रदेश में अपनी सियासी जड़े मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं. हालांकि, अवध के पुलाव के आगे हैदराबाद की बिरयानी हमेशा कमजोर पड़ी है. उसके तीखापन, मसाले और कच्चेपन को कभी भी अवध के लोगों ने पसंद नहीं किया. यूपी की सियासत भी कुछ ऐसी है, जहां अच्छे-अच्छे मठाधीश भी आकर गच्चा खा जाते हैं.

असदुद्दीन ओवैसी हैदराबादी स्टाइल में यूपी में राजनीतिक बाजी आजमाने की जुगत में है, लेकिन यहां के सियासी दांव पेच में इस तरह से उलझ गए हैं कि न तो उनसे निगलते बन रहा है और न ही उगलते. ओवैसी जिनके दम पर यूपी में जीत का स्वाद चखना चाहते थे उन्होंने ही उनके दांत खट्टे कर दिए हैं. हम बात भारतीय सुहेलदेव पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की कर रहे हैं, जिनके साथ मिलाकर ओवैसी यूपी में बड़ा सियासी उल्टफेर का सपना देख रहे थे. वही, राजभर अब ओवैसी का साथ छोड़कर अखिलेश यादव के साथ हाथ मिला लिया है.

दरअसल, यूपी की राजनीतिक नजाकत को समझते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में मुस्लिम बहुल पांच विधानसभा सीटें जीतने के बाद उसी तर्ज पर यूपी में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर के अगुवाई में छोटे-छोटे दलों से साथ मिलकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया था. इस मोर्चे के तहत सूबे में घूम-घूमकर मुस्लिमों के बीच माहौल बनाने में जुटे थे.  

ओवैसी ने यूपी की सियासी नब्ज को समझते हुए कि केंद्र में मोदी और सूबे में योगी सरकार के चलते मुस्लिम समाज मायूस हैं और तथाकथित सेकुलर दल भी चुप्प हैं. ऐसे में मुस्लिम भरोसेमंद विकल्पों की तलाश में हैं इसलिए असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार चुनाव के बाद अपना पूरा ध्यान विशेष रूप से यूपी पर केंद्रित किया हुआ है. देश और प्रदेश में बीजेपी सरकार बनने के बाद जिस तरह से मुसलमान निशाने पर रहे है और सपा-बसपा जैसे दलों की खामोशी ने ओवैसी को सकारात्मक माहौल की उम्मीद नजर रही थी.

यूपी में एआईएमआईएएम को अपना सुनहरा भविष्य दिख रहा है. इसलिए असदुद्दीन ओवैसी मौजूदा समय में सूबे के सभी मामलों पर खासकर मुसलमानों से जुड़े मामलों पर अपनी बात बेबाकी से रख रहे हैं. ओवैसी मुस्लिम समुदाय को लुभाने के लिए सिर्फ योगी-मोदी सरकार और बीजेपी पर ही निशाना नहीं साध रहे हैं बल्कि मुस्लिम के मुद्दों पर गैर-बीजेपी दलों के रवैए को लेकर भी सवाल खड़े रहे हैं.

मुस्लिमों के युवाओं की गिरफ्तारी से लेकर धर्मांतरण मामले में आरोपी मौलाना कलीम सिद्दीकी को लेकर असदुद्दीन ओवैसी मुखर हैं और कहते हैं कि सपा, बसपा, कांग्रेस क्यों नहीं बोलती हैं? सपा के हार्डकोर वोट माने जाने वाले यादव समुदाय के वफादारी पर सवाल खड़े करते हुए ओवैसी ने साफ तौर पर कहा कि 2017 और 2019 के चुनाव में यह साबित हो चुका है कि यादव वोटर अब सपा के साथ नहीं रहा बल्कि वो अब बीजेपी के साथ है.

इस तरह ओवैसी सपा के प्रति मुसलमानों में अविश्वास पैदा करने का दांव चल रहे हैं, लेकिन अखिलेश यादव ने ऐसा सियासी दांव चला कि वो चारो खाने चित हो गए हैं. ओवैसी जिन नेताओं के सहारे यूपी में जीत का सपना संजोय रखा था और सपा पर दबाव बनाने में जुटे थे. इसी कड़ी में ओवैसी, राजभर और भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल यादव से मुलाकात की थी. तीनों नेताओं ने शिवपाल यादव को सपा से गठबंधन करने की अगुवाई का जिम्मा सौंपा था.

सूत्रों की मानें तो शिवपाल यादव ने तीनों नेताओं को मौजूदगी में सपा प्रमुख अखिलेश यादव को फोन किया और गठबंधन के लिए संदेश दिया. इस पर अखिलेश ने उन्हें सोचकर बताने का वक्त लिया. इस दौरान असदुद्दीन ओवैसी भी खुलकर कांग्रेस छोड़कर किसी भी दल के साथ गठबंधन की बात सार्वजनिक रूप से करने लगे. ऐसे में सपा प्रमुख ने राजभर से सीधे संपर्क किया और उन्हें इस बात पर राजी किया कि ओवैसी और चंद्रशेखर को छोड़कर बाकी भागीदारी संकल्प मोर्चा के सभी के साथ हाथ मिलाने के लिए तैयार हैं.

वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो ओमप्रकाश राजभर को साईकिल भानी लगी है, क्योंकि ओवैसी की यारी से उन्हें यहां कुछ खास हासिल होता नहीं दिखा. ऐसे में उन्होंने भागीदारी मोर्चा के संकल्प लेने से पहले ही अपने यात्रा का मार्ग बदलने की कोशिश में मजबूत दांव खेल दिया है और ओवैसी को मझधार में छोड़कर सपा के साथ जाने का फैसला कर लिया. ऐसे में ओवैसी को बंगाल के बाद यूपी में भी सियासी झटका लगा है.

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि उत्तर प्रदेश का चुनाव दो ध्रुवी होता नजर आ रहा है. बीजेपी और सपा की सीधी लड़ाई के बनते समीकरण में छोटे दल भी अपने-अपने सियासी वजूद को बचाने में जुट गए हैं. ऐसे में कुछ छोटे दल बीजेपी के साथ जुड़ रहे तो कुछ सपा के साथ हाथ मिला रहे हैं. बीजेपी और सपा के सीधी लड़ाई में मुस्लिम वोटर भी पू

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