रायपुर। नृत्य वह संगम है। नृत्य वह सरगम है। जिसमें न सिर्फ सुर और ताल का लय समाया है, अपितु जीवन की वह सच्चाई भी समाई हुई है जो हमें अपने उत्साह और खुशियों के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। नृत्य मुद्राओं, भाव-भंगिमाओं और भावनाओं, रूप-सौंदर्य के साथ खुशियों की वह अभिव्यक्ति भी है जो नृत्य करने वालों से लेकर इसे देखने वालों के अंतर्मन में उतरकर उन्हें इस तरह झूमने को मजबूर कर देता है कि शरीर का रोम-रोम ही नहीं सारे अंग झूम उठते हैं।
छत्तीसगढ़ की भी अपनी अलग संस्कृति और पहचान है। सरगुजा से लेकर बस्तर तक वहाँ की प्रकृति में समाई नदी-नालों, झरनों,जलप्रपातों की अविरल बहती धाराओं की कलकल, झरझर की गूंज हो या बारिश में टिप-टिप गिरती पानी की बूंदे या उफान में रौद्र बहती नदियों की धारा, शांत जंगल में पंछियों का कलरव हो या छोटी-छोटी चिडि?ों की चहचहाहट, पर्वतों, घने जंगलों से आती सरसराती हवाएं हो या फिर वन्य जीवों की खौफ?ाक आवाजें, भौरों की गुँजन, कीड़े-मकौड़े, झींगुरों की आवाज से लेकर पेड़ो से गिरते हुए पत्तों और जरा सी हवा चलने पर दूर-दूर सरकते सूखे पत्तों की सरसराहट सहित कई ऐसी धुने हैं जो सरगुजा से लेकर बस्तर के बीच जंगलों में नैसर्गिक और खूबसूरत दृश्यों के साथ समाई है। भले ही हम इन प्रकृति और प्रकृति के बीच से उठती धुनों की भाषाओं को समझ नहीं पाते, लेकिन इनके बीच कुछ पल वक्त गुजारने से ऐसा महसूस होता है कि जंगलों, नदी, पर्वतों, वन्य जीवों की भी सुख-दुख से जुड़ी अनगिनत कहानियां है जो अपनी भाषाओं, अपनी शैलियों में गीत गाते हैं, नृत्य करते हैं और इनका यह गीत और नृत्य इनके आसपास रहने वाले जनजातियों की संस्कृति में घुल-मिलकर वाद्य यंत्रों के सहारे हमें नृत्य के साथ देखने और समझने को मिलता है।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति का दर्शन कराने के साथ हमें जीवन की कई चुनौतियों से लड?े और खुशी के अलावा विषम परिस्थितियों में भी जीवन यापन करने की प्रेरणा और संदेश देने वाले आदिवासी समाज के नृत्य, संगीत और गीत से एक बार फिर राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से देशभर के लोगों को जुड?े का मौका मिलेगा। छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा राजधानी रायपुर में एक बार फिर 28 से 30 अक्टूबर तक राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन साइंस कालेज मैदान में किया जा रहा है। महोत्सव की तैयारियां शुरू हो चुकी है।
इस महोत्सव में देशभर के अलग-अलग राज्यों से कलाकार जनजाति समाज सहित अन्य परिवेश के नृत्यों की रंगारंग प्रस्तुतियां देंगे। संस्कृति की ही अभिव्यक्ति व संवाहक छत्तीसगढ़ का नृत्य वास्तव में बहुत प्राचीन और समृद्धशाली होते हुए लोक कथाओं से जुड़ी है। जोकि मनोरंजन मात्र के लिए नहीं है। इन नृत्यों में आस्था, विश्वास और धार्मिक कथाओं का संगम भी है। आदिवासी समाज द्वारा अपने विशिष्ट प्रकार के नृत्यों का अभ्यास कर विभिन्न अवसरों पर जैसे- ऋतुओं के स्वागत, परिवार में बच्चे के जन्म, विवाह सहित अन्य बहुत से पर्व को उल्लास के साथ मनाने के लिए गीत गाये जाते हैं और नृत्यों का प्रदर्शन किया जाता है। इनमें आदिवासी समाज के पुरूष तथा महिलाओं की समान सहभागिता भी सम्मिलित होती है। सामूहिक रूप से सभी पारम्परिक धुनों में कदम और चाल और ताल के साथ नृत्य करते हैं।
छत्तीसगढ़ की जनजातियों द्वारा विभिन्न अवसरों में किए जाने वाले नृत्यों में विविधताओं के साथ कई समानताएं भी होती है। यहां आदिवासी समाज द्वारा सरहुल, मुरिया समाज द्वारा ककसार, उरांव का डमकच, बैगा और गोड़ समाज का करमा, डंडा, सुआ नाच सहित सतनामी समाज का पंथी और यदुवंशियों का राउत नाच भी प्रसिद्ध है।
छत्तीसगढ़ राज्य के अनेक नृत्य है। जो राज्य ही नहीं देश-विदेश में भी अपनी पहचान रखते हैं। आदिवासियों का प्रमुख क्षेत्र बस्तर, सरगुजा संभाग है। प्रकृति के नैसर्गिक वातावरण में रहने वाले इन जनजातियों के अलग-अलग जातीय नृत्य हैं। इनमें माडि?ों का ककसार, सींगों वाला नृत्य, तामेर नृत्य, डंडारी नाचा, मड़ई, परजा जाति का परब नृत्य, भतराओं का भतरा वेद पुरुष स्मृति और छेरना नृत्य, घुरुवाओं का घुरुवा नृत्य, कोयों का कोया नृत्य, गेंडीनृत्य प्रमुख है। मुख्यत: पहाड़ी कोरवा जनजातियों द्वारा किये जाने वाले डोमकच नृत्य आदिवासी युवक-युवतियों का प्रिय नृत्य है।