दिल्ली
म्यांमार में सैन्य तानाशाह जनरल मिन आंग लाई को आसियान शिखर सम्मेलन में न बुलाने के साहसी और अभूतपूर्व कदम से म्यांमार के कमजोर होने की उम्मीद थी. इस कदम से वहां की सैन्य सरकार पर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय दबाव भी बनता.लेकिन म्यांमार की सैन्य सरकार तो इन तमाम अटकलों को धता बताते हुए कूटनीतिक शतरंज की कई लम्बी चालें चल गयी. आसियान के जनरल लाई को न बुलाने के जवाब में म्यांमार ने पहले तो आसियान पर भेदभाव और आसियान चार्टर के उल्लंघन का आरोप लगाया और उसके बाद आसियान शिखर वार्ता में भाग लेने से ही मना कर दिया. इस अप्रत्याशित कदम से आसियान सकते में आ गया है क्योंकि दक्षिणपूर्व एशिया के देशों के इस क्षेत्रीय संगठन ने पहले से ही म्यांमार में लोकतंत्र बहाली के मुद्दे पर रुक-रुक कर और गिने चुने ही कदम ही उठाए हैं. फरवरी 2021 में जब आंग सान सू ची की लोकतांत्रिक सरकार को सैन्य तख्तापलट के जरिये गिरा दिया गया था तब भी इस मामले से सीधे तरीके से निपटने में आसियान को दो महीने लगे थे. वार्ताओं के तमाम दौर चले और म्यांमार के जनरलों से बातचीत और चिंतन-मंथन के बाद आसियान और म्यांमार की सरकार के बीच पांच बिंदुओं पर समझौता हुआ और इसे फाइव पॉइंट कंसेंसस की संज्ञा दी गई. लेकिन म्यांमार की सैन्य सरकार अपने वादे से मुकर गई.